आज की सबसे बड़ी आर्थिक खबर सीधे भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से आ रही है, जहाँ गवर्नर संजय मल्होत्रा ने अपनी हालिया मौद्रिक नीति समीक्षा में कुछ ऐसी बातें कही हैं जिसने उद्योग जगत से लेकर आम आदमी तक के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। एक तरफ जहाँ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने ‘ट्रंप ट्रेड वॉर‘ को आगे बढ़ाते हुए US टैरिफ का दायरा बढ़ा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ भारत की आर्थिक मजबूती की परीक्षा की घड़ी आ गई है।
संजय मल्होत्रा ने साफ तौर पर व्यापार और टैरिफ से जुड़े जोखिमों को भारत की विकास गाथा के लिए एक बड़ी चुनौती बताया है। हालाँकि, उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था के लचीलेपन पर पूरा भरोसा भी जताया है। इस पूरे मामले का भारत की तरक्की, आपकी जेब और भविष्य पर क्या असर पड़ सकता है? आइए, इस बड़ी खबर का हर पहलू आसान भाषा में समझते हैं।
क्या है RBI गवर्नर का बड़ा और अहम बयान?
बुधवार को अपनी मौद्रिक नीति की घोषणा करते हुए, RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने भविष्य को लेकर एक महत्वपूर्ण चेतावनी दी। उन्होंने कहा, “मौजूदा वैश्विक अनिश्चितताओं और टैरिफ से जुड़े घटनाक्रमों के कारण वित्त वर्ष 2025-26 की दूसरी छमाही (H2:2025-26) और उसके बाद विकास की गति धीमी होने की संभावना है।“
यह बयान उस समय आया है जब भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना हुआ है। ‘दूसरी छमाही‘ का मतलब है अक्टूबर 2025 से मार्च 2026 तक की अवधि। यानी, आने वाले महीनों में हमें आर्थिक मोर्चे पर कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, और इसकी सबसे बड़ी वजह अमेरिका द्वारा लगाए गए भारी–भरकम टैरिफ हैं।
ट्रंप का ‘टैरिफ‘ वाला दांव, भारत पर कितना असर?
यह समझने के लिए कि RBI गवर्नर क्यों चिंतित हैं, हमें पहले ट्रंप प्रशासन के हालिया फैसलों को समझना होगा। ये कोई छोटे–मोटे टैक्स नहीं हैं, बल्कि एक सोची–समझी व्यापारिक रणनीति का हिस्सा हैं, जिसे ‘ट्रंप ट्रेड वॉर‘ भी कहा जा रहा है।
50% टैरिफ का पूरा गणित
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने भारतीय निर्यातों पर 50% का भारी–भरकम टैरिफ लगाया है । यह दो हिस्सों में बंटा है:
- 25% ‘पारस्परिक टैरिफ‘ (Reciprocal Tariffs): यह अमेरिका का तर्क है कि वह भारतीय उत्पादों पर उतना ही टैरिफ लगा रहा है जितना भारत अमेरिकी उत्पादों पर लगाता है।
- 25% अतिरिक्त टैरिफ: यह टैरिफ भारत द्वारा रूस से कच्चा तेल खरीदने के कारण एक तरह की सजा के तौर पर लगाया गया है ।
यह स्थिति तब और भी जटिल हो जाती है जब भारत–अमेरिका व्यापार समझौते पर बातचीत चल रही है, लेकिन रूस से तेल खरीदने और अमेरिकी कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए भारतीय बाजार को पूरी तरह खोलने जैसे मुद्दों पर गतिरोध बना हुआ है.
क्या भारतीय निर्यात पर पड़ेगा सीधा असर?
RBI गवर्नर ने स्पष्ट रूप से कहा है कि इन टैरिफ से भारत के निर्यात में कमी आएगी । निर्यात किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण इंजन होता है। जब हमारे देश में बना सामान दूसरे देशों में बिकता है, तो देश में विदेशी मुद्रा (डॉलर) आती है और स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा मिलता है।
संजय मल्होत्रा ने अपने नीतिगत बयान में कहा, “जारी टैरिफ और व्यापार नीति की अनिश्चितताएं बाहरी मांग को प्रभावित करेंगी।” इसका सीधा मतलब है कि अमेरिका, जो भारतीय सामानों का एक बहुत बड़ा खरीदार है, अब टैरिफ की वजह से कम खरीदारी कर सकता है, जिससे हमारे निर्यातकों को नुकसान होगा।
GDP ग्रोथ पर टैरिफ का साया
जब निर्यात प्रभावित होता है, तो इसका सीधा असर देश की कुल आय, यानी GDP (सकल घरेलू उत्पाद) पर पड़ता है। RBI ने इसी जोखिम को ध्यान में रखते हुए अपने GDP विकास के अनुमानों में एक दिलचस्प बदलाव किया है।
एक तरफ, अच्छी खबर यह है कि RBI ने चालू वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत की GDP विकास दर का अनुमान 6.5% से बढ़ाकर 6.8% कर दिया है । यह बढ़ोतरी भारत की अर्थव्यवस्था की आंतरिक मजबूती को दर्शाती है।
लेकिन, सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि भविष्य के लिए अनुमान थोड़े निराशाजनक हैं। गवर्नर के अनुसार, US टैरिफ के कारण आगे की तिमाहियों में ग्रोथ धीमी रह सकती है। RBI ने अनुमान लगाया है कि हालिया GST दर कटौती भी 50% US टैरिफ के प्रभाव को पूरी तरह से बेअसर करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी ।
तिमाही–दर–तिमाही ग्रोथ का अनुमान
- Q2 (जुलाई–सितंबर 2025): 7.0%
- Q3 (अक्टूबर–दिसंबर 2025): 6.4%
- Q4 (जनवरी–मार्च 2026): 6.2%
- Q1 (अप्रैल–जून 2026): 6.4%
आप देख सकते हैं कि दूसरी तिमाही के बाद ग्रोथ के अनुमानों में गिरावट है। संजय मल्होत्रा ने स्पष्ट किया कि “आगे के अनुमानों में यह कमी मुख्य रूप से व्यापार से संबंधित बाधाओं (trade related headwinds) के कारण है।“
मुश्किलों के बीच भारत की ‘आर्थिक ढाल‘
हालांकि US टैरिफ और वैश्विक अनिश्चितताएं एक बड़ी चुनौती हैं, लेकिन RBI गवर्नर ने उन कारणों पर भी प्रकाश डाला जिनकी वजह से भारत की अर्थव्यवस्था इन झटकों को झेलने में सक्षम है। इसे हम भारत की ‘आर्थिक ढाल‘ कह सकते हैं, जो कई मजबूत स्तंभों पर टिकी है।
घरेलू ताकत और सरकार के सुधार
संजय मल्होत्रा ने विश्वास जताया कि आर्थिक विकास का दृष्टिकोण घरेलू चालकों (domestic drivers) द्वारा समर्थित है और लचीला बना हुआ है । इसका मतलब है कि हमारी अर्थव्यवस्था केवल निर्यात पर निर्भर नहीं है, बल्कि देश के भीतर की मांग भी बहुत मजबूत है।
इस मजबूती के पीछे कई कारण हैं:
- अनुकूल मानसून: एक अच्छा मानसून ग्रामीण मांग को बढ़ाता है, जिससे ट्रैक्टर, FMCG उत्पाद और अन्य सामानों की बिक्री बढ़ती है ।
- कम मुद्रास्फीति (Lower Inflation): महंगाई दर में कमी से लोगों की खरीदने की क्षमता बढ़ती है और वे अधिक खर्च करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं ।
- मौद्रिक नीति में ढील (Monetary Easing): पिछले कुछ समय में RBI द्वारा ब्याज दरों में की गई कटौती का असर अब दिख रहा है, जिससे लोन सस्ते हुए हैं ।
- GST सुधार: गवर्नर ने विशेष रूप से GST सुधारों के सकारात्मक प्रभाव का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि GST को तर्कसंगत बनाने जैसे कदम बाहरी बाधाओं के प्रतिकूल प्रभावों को कुछ हद तक कम करने में मदद करेंगे । प्रधानमंत्री मोदी द्वारा घोषित अन्य नीतिगत सुधार भी इस प्रभाव को कम करने में सहायक होंगे ।
विदेशी मुद्रा भंडार और चालू खाता घाटा
भारत की आर्थिक मजबूती का एक और बड़ा प्रमाण हमारा विदेशी मुद्रा भंडार है। गवर्नर ने बताया कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 700.2 बिलियन डॉलर के मजबूत स्तर पर है, जो 11 महीनों के आयात बिल को कवर करने के लिए पर्याप्त है । यह किसी भी बाहरी आर्थिक झटके से निपटने के लिए एक बड़े कुशन की तरह काम करता है।
इसके अलावा, विदेश में काम करने वाले भारतीयों द्वारा भेजे जाने वाले पैसे (strong remittance) से चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) को टिकाऊ स्तर पर रखने में मदद मिलने की उम्मीद है ।
मौद्रिक नीति में क्यों नहीं हुआ बदलाव?
इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए, RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने सर्वसम्मति से रेपो रेट को 5.5% पर अपरिवर्तित रखने का फैसला किया । रेपो रेट वह दर है जिस पर RBI बैंकों को कर्ज देता है, और यह आपके होम लोन, कार लोन और अन्य कर्जों की EMI को सीधे प्रभावित करता है।
दरों में कोई बदलाव न करने के पीछे RBI का तर्क बहुत विवेकपूर्ण है। संजय मल्होत्रा ने समझाया:
- पहले के फैसलों का असर: RBI पहले ही ब्याज दरों में कटौती कर चुका है, और समिति अभी यह देखना चाहती है कि उन कटौतियों और सरकार के राजकोषीय उपायों का जमीन पर पूरा असर क्या होता है ।
- अनिश्चितता का माहौल: व्यापार संबंधी अनिश्चितताएं अभी भी सामने आ रही हैं। ऐसे में, MPC ने कोई भी अगला कदम उठाने से पहले स्थिति के और अधिक स्पष्ट होने का इंतजार करना उचित समझा ।
संक्षेप में, RBI ‘देखो और इंतजार करो‘ की नीति अपना रहा है ताकि वह किसी भी अप्रत्याशित स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहे।
भविष्य का रास्ता और निष्कर्ष
RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा का संदेश स्पष्ट है: आने वाले दिन चुनौतियों से भरे हो सकते हैं, लेकिन घबराने की कोई बात नहीं है। US टैरिफ और ट्रंप ट्रेड वॉर निश्चित रूप से भारतीय निर्यात और GDP विकास के लिए एक जोखिम हैं, और हमें दूसरी छमाही में विकास की धीमी गति के लिए तैयार रहना पड़ सकता है।
हालांकि, भारत की अर्थव्यवस्था की नींव मजबूत है। मजबूत घरेलू मांग, सरकार द्वारा किए गए GST जैसे संरचनात्मक सुधार, अनुकूल मानसून और एक विशाल विदेशी मुद्रा भंडार हमें इन वैश्विक तूफानों का सामना करने की ताकत देते हैं । RBI की सतर्क और विवेकपूर्ण मौद्रिक नीति भी इस स्थिरता को बनाए रखने में मदद कर रही है।
आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत–अमेरिका व्यापार वार्ता क्या मोड़ लेती है और क्या टैरिफ का यह बादल छंटता है। तब तक, भारत अपनी आंतरिक शक्तियों के दम पर आगे बढ़ने के लिए तैयार है।
अस्वीकरण: यह लेख सार्वजनिक रूप से उपलब्ध स्रोतों और आधिकारिक घोषणाओं से मिली जानकारी पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल सूचना प्रदान करना है।